रमेश सिंह टेस्ट: भारत में बाहरी क्षेत्र - 1
10 Questions MCQ Test भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi | रमेश सिंह टेस्ट: भारत में बाहरी क्षेत्र - 1
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2 साल के निचले स्तर पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार, जानिए देश की सेहत पर क्या असर डालेगा?
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, 19 अगस्त को समाप्त सप्ताह के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में आई गिरावट का मुख्य कारण फॉरेन रिजर्व असेट्स (एफसीए) और गोल्ड रिजर्व्स का कम होना है.
देश का विदेशी मुद्रा भंडार 19 अगस्त को समाप्त सप्ताह में 6.687 अरब डॉलर घटकर 564.053 अरब डॉलर रह गया. यह अक्टूबर, 2020 के बाद पिछले दो साल का निम्नतम स्तर है. हालांकि, एक वैश्विक रेटिंग एजेंसी का कहना है यह पिछले 20 सालों के रिजर्व की तुलना में अधिक ही है.विनिमय दर और विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन
इससे पहले 12 अगस्त को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.238 करोड़ डॉलर घटकर 570.74 अरब डॉलर रहा था. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, 19 अगस्त को समाप्त सप्ताह के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में आई गिरावट का मुख्य कारण फॉरेन रिजर्व असेट्स (एफसीए) विनिमय दर और विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन और गोल्ड रिजर्व्स का कम होना है.
साप्ताहिक आंकड़ों के मुताबिक, आलोच्य सप्ताह में एफसीए 5.77 अरब डॉलर घटकर 501.216 अरब डॉलर रह गयी. डॉलर में अभिव्यक्त विदेशी मुद्रा भंडार में रखे जाने वाली फॉरेन रिजर्व असेट्स में यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्राओं में मूल्यवृद्धि अथवा मूल्यह्रास के प्रभावों को शामिल किया जाता है.
आंकड़ों के अनुसार, आलोच्य सप्ताह में स्वर्ण भंडार का मूल्य 70.4 करोड़ डॉलर घटकर 39.914 अरब डॉलर रह गया. समीक्षाधीन सप्ताह में, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के पास जमा विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 14.6 करोड़ डॉलर घटकर 17.987 अरब डॉलर पर आ गया. जबकि आईएमएफ में रखे देश का मुद्रा भंडार भी 5.8 करोड़ डॉलर गिरकर 4.936 अरब डॉलर रह गया.
वहीं, विदेश में अमेरिकी मुद्रा की मजबूती और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के चलते अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया सोमवार को शुरुआती कारोबार में 31 पैसे टूटकर अब तक के सबसे निचले स्तर 80.15 रुपये पर आ गया है. रुपया शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले 79.84 पर बंद हुआ था. इससे पहले रुपये का ऑल टाइम लो 80.06 था.
जबकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने 1 अगस्त से 26 अगस्त तक भारतीय बाजार में 55,031 करोड़ रुपये का निवेश किया है. इक्विटी बाजार में, विदेशी फंड का प्रवाह 49,254 करोड़ रुपये रहा. यह एफपीआई की इस साल की अब तक की सबसे बड़ी मासिक खरीदारी होगी.
क्या होता है विदेशी मुद्रा भंडार?
विदेशी मुद्रा भंडार को किसी देश की हेल्थ का मीटर माना जाता है. इस भंडार में विदेशी करेंसीज, गोल्ड रिजर्व्स, ट्रेजरी बिल्स सहित अन्य चीजें आती हैं जिन्हें किसी विनिमय दर और विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन विनिमय दर और विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन देश की केंद्रीय बैंक या अन्य मौद्रिक संस्थाएं संभालती हैं. ये संस्थाएं पेमेंट बैलेंस की निगरानी करती हैं, मुद्रा की विदेशी विनिमय दर देखती हैं और वित्तीय बाजार स्थिरता बनाए रखती हैं.
विदेशी मुद्रा भंडार में क्या-क्या आता है?
आरबीआई अधिनियम और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 विदेशी मुद्रा भंडार को नियंत्रित करते हैं. इसे चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है. पहला और सबसे बड़ा घटक विदेशी मुद्रा संपत्ति है जो कि यह कुल पोर्टफोलियो का लगभग 80 फीसदी है. भारत अमेरिकी ट्रेजरी बिलों में भारी निवेश करता है और देश की विदेशी मुद्रा संपत्ति का लगभग 75 फीसदी डॉलर मूल्यवर्ग की सिक्योरिटीज में निवेश किया जाता है.
इसके बाद गोल्ड में निवेश और आईएमएफ से स्पेशल ड्राइंग राइट्स (एसडीआर) यानी विशेष आहरण अधिकार आता है. सबसे अंत में आखिरी रिजर्व ट्रेंच पोजीशन है.
विदेशी मुद्रा भंडार का उद्देश्य क्या है?
फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व्स का सबसे पहला उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि रुपया तेजी से नीचे गिरता है या पूरी तरह से दिवालिया हो जाता है तो आरबीआई के पास बैकअप फंड है. दूसरा उद्देश्य यह है कि यदि विदेशी मुद्रा की मांग में वृद्धि के कारण रुपये का मूल्य घटता है, तो आरबीआई भारतीय मुद्रा बाजार में डॉलर को बेच सकता है ताकि रुपये के गिरने की रफ्तार को रोका जा सके. तीसरा उद्देश्य यह है कि विदेशी मुद्रा का एक अच्छा स्टॉक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए एक अच्छी छवि स्थापित करता है क्योंकि व्यापारिक देश अपने भुगतान विनिमय दर और विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन के बारे में सुनिश्चित हो सकते हैं.
क्या होगा असर?
अमेरिका स्थित रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स (S&P Global Ratings) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि उभरते बाजारों को खाद्य पदार्थों की अधिक कीमतों, अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व और टाइट फाइनेंशियल कंडीशंस से बड़े पैमाने पर बाहरी दबाव का सामना करना पड़ रहा है.
उसने कहा है कि इस मामले में भारत कोई अपवाद नहीं है. इन संकटों के साथ ही बड़े पैमाने पर राजकोषीय घाटे और घरेलू स्तर पर महंगाई की अधिक दर का भी सामना करना है. हालांकि, इन सबके बावजूद उसने भारत के हालात को अन्य देशों की तुलना में बेहतर करार दिया है.
सॉवरेन एंड इटरनेशनल पब्लिक फाइनेंश रेटिंग के डायरेक्टर एंड्र्यू वूड ने कहा कि हमने देखा है कि कोविड-19 महामारी शुरुआती दौर के बाद से भारत दुनिया का नेट क्रेडिटर यानी कर्जदाता बन गया है. इसका मतलब यह है कि भारत ने उन जै कठिनाइयों के खिलाफ स्टॉक तैयार कर लिया है, जिसका हम अभी सामना कर रहे हैं.
वहीं, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी पर वह कहते हैं कि अगर इन रिजर्व्स को पिछले 20 सालों के रिजर्व्स से तुलना करेंगे तो मामूल अंतर से यह अधिक ही है. इसके अलावा, वुड ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस साल के अंत तक विदेशी मुद्रा भंडार मामूली रूप से लगभग 600 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा और अगले कुछ वर्षों में इसी के आसपास बरकरार रहेगा.
विदेशी मुद्रा प्रबंधन की चुनौती पर निबंध | Essay on Challenge for Management of Foreign Currency in Hindi
सचमुच अब वह समय बीत गया है, जब भारत को विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए पसीना बहाना पड़ता था । अब तो विदेशी मुद्रा भारत की ओर दौड़ लगाकर आते हुए दिखाई दे रही है । इतना ही नहीं, देश में विदेशी पूंजी के बढ़ते ढेर से तरह-तरह के खतरे उत्पन्न हो रहे हैं ।
देश में निवेश का उपयुक्त माहौल, उदार नीतियां और सरल प्रक्रियाओं के साथ-साथ रुपये की मजबूती पर अंकुश लगाने के लिए रिजर्व बैंक के भारी दखल की वजह से नवम्बर 2011 में देश में विदेशी मुद्रा भंडार करीब 320 अरब डॉलर के रिकार्ड स्तर पर पहुंच चुकी है ।
अक्टूबर 2006 से विदेशी मुद्रा भडार की स्थिति उत्साहवर्द्धक है वर्ष 1991 में हमारे सामने विदेशी मुद्रा का संकट पैदा हो गया था, जब हमारा मुद्रा भंडार सिर्फ दो सप्ताह के आयात के लायक रह गया था और पर्याप्त विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए हमें सोना ब्रिटेन के पास बंधक रखना पड़ा था । अब विदेशी मुद्रा के भरपूर प्रवाह का प्रबंधन चुनौती बन गया है ।
देश में बढते विदेशी निवेश से सरकार असमंजस की स्थिति में है और अब उसे कुछ सूझ नहीं पा रहा है कि बढ़ते विदेशी मुद्रा प्रवाह का प्रबंधन कैसे किया जाये? भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. सुब्बाराव के मुताबिक आज सवाल यह नहीं है कि विदेशी मुद्रा कैसे आकर्षित की जाये बल्कि अब बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि देश में पहुंच रही विदेशी मुद्रा को उत्पादक कार्यो में कैसे लगाया जाये? उनका कहना है कि इस समय देश में कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब तीन प्रतिशत विदेशी मुद्रा प्रवाह हो रहा है, लेकिन इसमें से केवल 1.1 प्रतिशत का ही उत्पादक कार्यो में उपयोग हो पा रहा है ।
शेष विदेशी मुद्रा रिजर्व बैंक के आरक्षित भंडार में जमा हो रही है । विदेशी मुद्रा का आना शुभ है, लेकिन इस मुद्रा भंडार का बिना सदुपयोग के पड़े रहना अशुभ है । चीन के लगभग 1300 अरब डालर के भंडार की तुलना में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार खासा कम है । रूस, दक्षिण कोरिया से लेकर हांगकांग तक कई ऐसे देश हैं, जो अपने भारी भरकम मुद्रा भंडार को ठीक से संभाल रहे है ।
देश में विदेशी मुद्रा के खतरे शेयर बाजार के परिप्रेक्ष्य में और बढ़ गये हैं । शेयर बाजारों में जो हाल ही में तेजी आई है उसका कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) द्वारा भारतीय शेयर बाजारों में निवेश बढाना है । निवेश अक्टूबर 2007 तक 11 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया था । वर्ष 2006-07 में करीब 10 अरब डॉलर का निवेश हुआ था । अनुमान था कि आगमी वर्षों में यह निवेश 15 अरब डॉलर तक पहुच जाएगा ।
अमेरिका के फेडरल रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दर में की गयी कटौती ने विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) को नये जोश से भर दिया । कम से कम भारतीय शेयर बाजारों में उनके द्वारा किये गये भारी-भरकम निवेश से तो ऐसा ही प्रतीत होता है । एफआईआई के इस जोरदार निवेश के बलबूते ही शेयर बाजारों में लम्बे समय तक लगातार तेजी देखने को मिली ।
इस निवेश के सहारे ही सेंसेक्स 2007 में 20000 का आंकड़ा लांघने में कामयाब रहा । शेयर बाजार जहां एक ओर उफान के नित नये रिकॉर्ड बनाकर नई-नई ऊंचाइयों की ओर बढता नजर आता है, वहीं दूसरी ओर गिरावट के भी ऐतिहासिक स्तर बनाने में इसका कोई साथी नहीं है । बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि इस उतार-चढाव की अहम वजह बाजार में लगा विदेशी पैसा है ।
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम. के. नारायणन ने आशंका जाहिर की थी कि विदेशी निवेश की आड़ में भारतीय शेयर बाजार में आतंककारियों का धन लग रहा है । देश की खुफिया एजेंसियों का कहना है कि यह धन ड्रग माफियाओं, अंडरवर्ल्ड और आतंककारियों का हो सकता है । भारतीय रिजर्व बैंक का मानना है कि पार्टीसियेटरी नोट (पीएन) रूट की मार्फत हॉट मनी या हैज फंड निवेश कर सकते हैं ।
सरकार और सेबी भी इस धन के बढते हुए प्रभाव से चिंतित है । कुछ दिन पहले देश की खुफिया एजेंसियां ऐसे निवेश के प्रति सरकार को आगाह कर चुकी है । एफआईआई अधिकांश निवेश पीएन द्वारा करते हैं । इस पीएन में कौन पैसा लगाता है, इसकी कोई जानकारी एफआईआई नहीं रखते हैं ।
पिछले कुछ साल से देश में यह मंथन चल रहा है कि पीएन रूट की मार्फत जो ‘अंजान’ निवेश हो रहा है उसको रोका जाना चाहिए । आतकवाद से जुड़ी संदिग्ध वित्तीय गतिविधियों के कुछ मामले गृह मत्रालय, खुफिया ब्यूरो और सीबीआई को प्राप्त हुए हैं । वर्ष 2006-07 के दौरान वित्तीय खुफिया इकाई ने बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से मिली सूचना के आधार पर लेनदेन की 646 रिपोर्टों का विश्लेषण किया ।
इनमें से 39 मामलों को संदिग्ध वित्तीय गतिविधियों का मानते हुए विभिन्न एजेंसियों को विचारार्थ भेजा गया है । संदिग्ध वित्तीय लेन-देन के मुद्दे में शेयर बाजारों में वित्त पोषण भी शामिल है । सेबी ने एक जांच में यह पाया था कि किस तरह भारत से चला पैसा कई देशों से होते हुए वापस भारत में विदेशी कोष के रूप में आ रहा है । इस खेल को अंजाम देने वाले खिलाड़ी इसके लिए पीएन का ही रास्ता इस्तेमाल कर रहे थे ।
जहां शेयर बाजार में एफआईआई का निवेश जोखिमपूर्ण है, वहीं उफनते हुए विदेशी मुद्रा भंडार को ठीक से प्रबंधित नहीं किया गया, तो उरपसे विनिमय दर हद से ज्यादा नुकसानदायक हो सकती है और रुपये का एक हद से ज्यादा मजबूत होना निर्यात उद्योग को गंभीर हानि पहुचा सकता है । इस समय भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के बड़े हिस्से को अपेक्षाकृत कम ब्याज आय मिल रही है ।
यदि कुछ हिस्सा ढांचागत परियोजनाओं के लिए दिया जाता है तो सरकार को अच्छी आय होगी और परियोजनाओं के लिए उचित दर पर संसाधन उपलब्ध हो जायेंगे । घरेलू ऋणदाताओं को भी इससे राहत मिलेगी और उनके संसाधन भी बढेंगे ।
उच्च विदेशी मुद्रा भंडार से विदेशों से कर्ज की लागत कम हुई: आरबीआई लेख
मुंबई, 18 अप्रैल (भाषा) देश में विदेशी मुद्रा भंडार के उच्च स्तर पर होने से विदेशों से कर्ज की लागत के साथ-साथ तथा कंपनियों के लिये जोखिम प्रबंधन की लागत भी कम हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के एक लेख में यह कहा गया है। आरबीआई 2019 से विदेशी मुद्रा भंडार पर जोर दे रहा है और यह तीन सितंबर, 2021 को रिकॉर्ड 642.453 अरब डॉलर पर पहुंच गया। यह दिसंबर, 2018 के मुकाबले दोगुना से अधिक है। हालांकि मार्च, 2022 में विदेशी मुद्रा भंडार 14.272 अरब डॉलर घट गया। इसका कारण विकसित देशों में ब्याज दर बढ़ने और रूस-यूक्रेन
आरबीआई 2019 से विदेशी मुद्रा भंडार पर जोर दे रहा है और यह तीन सितंबर, 2021 को रिकॉर्ड 642.453 अरब डॉलर पर पहुंच गया। यह दिसंबर, 2018 के मुकाबले दोगुना से अधिक है।
हालांकि मार्च, 2022 में विदेशी मुद्रा भंडार 14.272 अरब डॉलर घट गया। इसका कारण विकसित देशों में ब्याज दर बढ़ने और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण घरेलू बाजार से पूंजी निकासी है।
‘उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में विदेशी मुद्रा भंडार बफर: चालक, उद्देश्य और निहितार्थ’ शीर्षक से प्रकाशित लेख में कहा गया है, ‘‘भारत के लिये विदेशी मुद्रा भंडार के उच्च स्तर को विदेशी उधारी के साथ-साथ जोखिम प्रबंधन की कम लागत के रूप में देखा जाता है।’’
इस लेख को आरबीआई के आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग के डी केशो राउत और दीपिका रावत ने लिखा है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि लेख में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और कोई जरूरी नहीं है कि उसके दृष्टिकोण के अनुरूप हों।
लेख के अनुसार हाल के वर्षों में भारत के मुद्रा भंडार में वृद्धि का विनिमय दर और विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन कारण शुद्ध पूंजी प्रवाह के मुकाबले चालू खाता घाटे (सीएडी) का मामूली स्तर पर होना है।
इसके अनुसार यह मोटे तौर पर कोविड के बाद की अवधि में कुछ उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में देखी गई प्रवृत्ति के अनुरूप है। यह आंशिक तौर पर विकसित अर्थव्यवस्थाओं में काफी सस्ती मौद्रिक नीति का नतीजा है। इसके कारण अधिक रिटर्न की तलाश में वहां से पूंजी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में आई।
देश का चालू खाते का घाटा 2019-20 में उल्लेखनीय रूप से कम हुआ और 2020-21 में अधिशेष में रहा। दूसरी तरफ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ पूंजी खाते में इन दोनों साल अधिशेष की स्थिति रही।
निम्न में से कौन विदेशी मुद्रा भंडार का संरक्षक है?
प्रमुख बिंदु
भारतीय रिजर्व बैंक, देश के विदेशी मुद्रा भंडार का संरक्षक है और उनके निवेश के प्रबंधन की जिम्मेदारी निहित है।
विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन को नियंत्रित करने वाले कानूनी प्रावधान भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 में निर्धारित किए गए हैं।
हाल के वर्षों में रिज़र्व बैंक का आरक्षित निधि प्रबंधन कार्य दो मुख्य कारणों से महत्व और परिष्कार दोनों की दृष्टि से बढ़ा है।
दूसरा, वैश्विक बाजार में विनिमय और ब्याज दरों में बढ़ती अस्थिरता के साथ, भंडार के मूल्य को संरक्षित करने और उन पर उचित रिटर्न प्राप्त करने का कार्य चुनौतीपूर्ण हो गया है।
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Last updated on Oct 27, 2022
The SSC MTS Tier II Admit Card has been released. T he paper II will be held on 6th November 2022. Earlier, the result for the Tier I विनिमय दर और विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन was released. The candidates who are qualified in the SSC MTS Paper I are eligible for the Paper II. A total of 7709 vacancies are released, out of which 3854 vacancies are for MTS Group age 18-25 years, 252 vacancies are for MTS Group age 18-27 years and 3603 vacancies are for Havaldar in CBIC.
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