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ऊहापोह और उत्साह की राजनीति
भोपाल। प्रदेश में विधानसभा 2023 की चुनावी तैयारियां शुरू हो चुकी है। सत्तारूढ़ दल भाजपा में जहां अधिकांश भाजपाई गुजरात में पसीना बहा रहे हैं, वहीं प्रदेश के अधिकांश कांग्रेसी “भारत जोड़ो यात्रा” में दिन-रात एक कर रहे हैं। दोनों ही दलों के नेताओं का मकसद राष्ट्रीय नेतृत्व की नजरों में सकारात्मक छवि बनाने की है क्योंकि इसके बाद फाइनल प्लानिंग शुरू हो जाएगी।
दरअसल, राजनीति में अवसर का बड़ा महत्व होता है। जनता के बीच छवि बनाने के लिए मुसीबत के समय संघर्ष और पार्टी नेतृत्व के सामने छवि बनाने के लिए पार्टी के कार्यक्रमों में तन मन धन से सक्रिय रहना और इसी प्रकार की परिस्थितियां प्रदेश के दोनों दलों के नेताओं को उपलब्ध हो गई है। जिसको भुलाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहा है क्योंकि क्योंकि भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए जहां गुजरात के विधानसभा के चुनाव नाक का सवाल है। वहीं कांग्रेस के लिए भारत जोड़ो यात्रा ही एक बड़ा सहारा है।
बहरहाल, गुजरात विधानसभा के चुनाव की प्रथम चरण के लिए गुरुवार अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय को मतदान हो चुका है 89 सीटों पर हुए मतदान के बाद अब भाजपा नेता प्रदेश की ओर लौटने लगे हैं। जिसको भी जिम्मेदारी दी गई उसने बखूबी उसको निभाया क्योंकि पार्टी के सबसे बड़े रणनीतिकार और देश के गृह मंत्री अमित शाह की निगाहें नेताओं के परफारमेंस पर लगी हुई है। लगभग एक दर्जन मंत्री गुजरात चुनाव में अलग-अलग क्षेत्रों में प्रचार करते रहे संगठन के भी दर्जनों नेता गुजरात की गलियों में घूमते रहे माना जा रहा है कि गुजरात चुनाव के परिणाम के बाद प्रदेश में मंत्रिमंडल में फेरबदल और विभिन्न निगम मंडलों में नियुक्तियों की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा अब प्रदेश में अंतिम पड़ाव पर है 5 दिसंबर को यह यात्रा राजस्थान में प्रवेश कर जाएगी। 13 दिनों तक यात्रा के प्रदेश में रहने तक कोई भी कांग्रेसी यात्रा के इर्द-गिर्द ही दिखना चाह रहा है जितने भी कांग्रेस नेताओं को भारत जोड़ो यात्रा की जिम्मेदारी दी गई। उन सभी ने तन मन धन से यात्रा को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
कुल मिलाकर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट चुके दोनों ही प्रमुख दल भा जा पा और कांग्रेस के नेताओं के लिए अपना परफॉर्मेंस दिखाने का मौका मिल गया लेकिन इसके बावजूद भी दोनों ही दलों के नेताओ में कोई ऊहापोह की स्थिति में है तो कोई उत्साहित है आखिर परीक्षा देने के बाद परिणाम की बारी जो है।
Electric Vehicles: ईवी के शौकीनों के लिए बड़ी खबर, सस्ती होने वाली है इलेक्ट्रिक गाड़ियां
Electric Vehicles: बाजार में मौजूद इलेक्ट्रिक गाड़ियां इतनी महंगी आती हैं कि वह उसे खरीदने में सक्षम नहीं होते हैं। ऐसे लोगों के लिए एक खुशखबरी है।
सस्ती होने वाली है इलेक्ट्रिक गाड़ियां: Photo- Social Media
Electric Vehicles: पेट्रोल-डीजल और सीएनजी की आसमान छूती कीमतों ने कार मालिकों के पसीने छुड़ा दिए हैं। सबसे अधिक प्रभावित मध्यम आय वर्ग के लोग हो रहे हैं। उन्होंने गाड़ियों का इस्तेमाल काफी कम कर दिया है। बाजार में मौजूद इलेक्ट्रिक गाड़ियां (electric vehicles) इतनी महंगी आती हैं कि वह उसे खरीदने में सक्षम नहीं होते हैं। ऐसे लोगों के लिए एक खुशखबरी है। केंद्र सरकार (Central government) इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतों में बड़ी कटौती का प्लान बना रही है। सरकार की योजना इनकी कीमतों को पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के बराबर लाना है।
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी (Union Road Transport Minister Nitin Gadkari) ने इसे लेकर बड़ा ऐलान किया है। उन्होंन कहा कि आने वाले समय में ईवी गाड़ियों की कीमत पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के बराबर कर दी जाएंगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वह इसमें ज्यादा समय नहीं लगाना चाहते। उनकी कोशिश साल भर के अंदर ऐसा करने की है।
दरअसल, सरकार को जीवाश्म ईंधन के आयात में बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा को खपाना पड़ता है। आयात बिल में इनका हिस्सा सबसे बड़ा होता है। इसलिए सरकार इसपर देश की निर्भरता कम करना चाहती है। जीवाश्व ईंधन के कम आयात से सरकार की आर्थिक सेहत के साथ देश के पर्यावरण की सेहत को भी बचाया जा सकेगा।
क्या है सरकार की योजना
इलेक्ट्रिक गाड़ियां के महंगे होने का कारण है, उसमें लगने वाली बैटरी। गाड़ी की कीमत का 35 से 40 प्रतिशत खर्च केवल बैटरी पर बैठता है। जिसके कारण ईवी अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय गाड़ियां अन्य वाहनों के मुकाबले महंगी बिकती हैं। सरकार नई टेक्नोलॉजी और सब्सिडी के साथ इनकी कीमतों को नीचे लाने में जुटी हुई है। चार्जिंग की समस्या को सुलझाने के लिए देशभर में चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए जा रहे हैं। राहत की बात ये है कि महंगा होने के बावजूद लोगों का इसके प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है। इलेक्ट्रिक गाड़ियां का बढ़ता बाजार इसकी गवाही है। इनकी बिक्री में 800 प्रतिशत की रिकॉर्ड ग्रोथ दर्ज की गई है।
जानें कब तक कम होंगी कीमतें
मीडिया अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय रिपोर्ट्स में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के हवाले से बताया जा रहा है कि इलेक्ट्रिक गाड़ियां की कीमतों (electric car prices) में कमी लाने में 1 साल तक अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय का वक्त लग जाएगा। एक अनुमान के मुताबिक, 2023 के आखिरी और 2024 की शुरूआत तक ये हो सकेगा। सरकार की तरफ से फिलहाल कीमतों में कितने कटौती की जाएगी, इसकी जानकारी नहीं दी गई है।
General Bipin Rawat Death Anniversary: शौर्य और साहस का दूसरा नाम है दिवंगत जनरल बिपिन रावत, पाकिस्तान भी कांपता था, जानें उनके जीवन से जुडी दिलचस्प बातें
बतौर सीडीएस जनरल रावत पर तीनों सेनाओं में स्वदेशी साजो-सामान का उपयोग बढ़ाने का दायित्व था और वे सेना के तीनों अंगों के ऑपरेशन, प्रशिक्षण, ट्रांसपोर्ट, सपोर्ट सर्विसेस, संचार, रखरखाव, रसद पूर्ति तथा संयंत्रों में टूट-फूट संबंधी कार्य भी देख रहे थे.
भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ दिवंगत जनरल बिपिन रावत का हेलीकाप्टर एक साल पहले आज ही के दिन दुर्घटनाग्रस्त हुआ था. जनरल रावत भारतीय सेना के 27वें प्रमुख भी थे. 8 दिसंबर, 2021 को एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में जनरल रावत, उनकी पत्नी मधुलिका और 12 सशस्त्र कर्मियों का निधन हो गया था. हादसे का शिकार हुए हेलीकॉप्टर को विंग कमांडर पृथ्वी सिंह उड़ा अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय रहे थे. हेलीकॉप्टर सुलुर के आर्मी बेस से निकलने के बाद जनरल रावत को लेकर वेलिंगटन सैन्य ठिकाने की ओर बढ़ रहा था और सुलूर से करीब 94 अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय किलोमीटर दूर हेलीकॉप्टर अचानक हादसे का शिकार हो गया.
सीडीएस जनरल रावत अपनी पत्नी और कुछ वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों व कर्मियों के साथ वेलिंग्टन में ‘डिफेंस सर्विसेज कॉलेज’ जा रहे थे, जहां वे थल सेनाध्यक्ष एमएम नरवणे के साथ बाद में एक कार्यक्रम में भाग लेने वाले थे. भारतीय सेना में उनकी चार दशक लंबी सेवा सदैव असाधारण बहादुरी से भरी रही और सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए वे हमेशा दो टूक लहजे में दुश्मन को चेताते रहते थे. दुश्मन देश की नापाक हरकतों पर उसे कड़े लहजे में चेतावनी देते हुए एक बार उन्होंने कहा था कि पहली गोली हमारी नहीं होगी लेकिन उसके बाद हम गोलियों की गिनती नहीं करेंगे. 16 मार्च 1958 को पौड़ी गढ़वाल के एक गांव में जन्मे बिपिन रावत के पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी सैन्य अधिकारी थे, जो 1988 में लेफ्टिनेंट जनरल पद से रिटायर हुए थे.
आइए जानते हैं उनके जीवन से जुडी बड़ी बातें
गोरखा राइफल्स से की सैन्य करियर की शुरुआत
बिपिन रावत ने 1978 में सेना की 11वीं गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन से अपने सैन्य करियर की शुरुआत की थी और उसके बाद से उनका पूरा कैरियर उपलब्धियों से भरा रहा। 2011 अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय में उन्होंने चौ. चरण सिंह यूनिवर्सिटी से मिलिट्री मीडिया स्टडीज में पीएचडी की डिग्री हासिल की थी। उन्हें उत्तम युद्ध सेवा मैडल, अति विशिष्ट सेवा मैडल, युद्ध सेवा मैडल, सेना मैडल, विदेश सेवा मैडल इत्यादि कई पदक मिले थे। उन्होंने 1999 में पाकिस्तान के साथ हुए करगिल युद्ध में हिस्सा लिया था। इसके अलावा उन्होंने कांगो में संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन का नेतृत्व भी किया था और उस दौरान उन्होंने एक बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड का भी नेतृत्व किया था।
31 दिसम्बर, 2016 को संभाली भारतीय सेना की कमान
1 सितम्बर 2016 को उन्हें उप-सेना प्रमुख बनाया गया और 31 दिसम्बर 2016 को उन्होंने भारतीय सेना की कमान संभाली थी. उन्होंने सैन्य सेवाओं के दौरान एलओसी, चीन बॉर्डर तथा नॉर्थ-ईस्ट में लंबा समय गुजारा. पूर्वी सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा, कश्मीर घाटी तथा पूर्वाेत्तर सहित अशांत क्षेत्रों में काम करने का उनका अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय लंबा और शानदार अनुभव था. 2016 में उरी में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद बिपिन रावत के नेतृत्व में 29 सितम्बर 2016 को पाकिस्तान स्थित आतंकी शिविरों को ध्वस्त करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी. उन्हें ऊंचाई पर जंग लड़ने (हाई माउंटेन वॉरफेयर) तथा काउंटर-इंसर्जेंसी ऑपरेशन अर्थात् जवाबी कार्रवाई के विशेषज्ञ के तौर पर जाना जाता था. सेना प्रमुख पद से रिटायरमेंट से एक दिन पहले ही 30 दिसम्बर 2019 को सरकार द्वारा उन्हें चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बनाने की घोषणा की गई थी और 1 जनवरी 2020 को वे भारत के पहले सीडीएस बने थे.
युद्ध की चुनौतियों से निपटने के लिए तीनों सेनाओं में तालमेल बढ़ाना था मुख्य उद्देश्य
बतौर सीडीएस जनरल रावत पर तीनों सेनाओं में स्वदेशी साजो-सामान का उपयोग बढ़ाने का दायित्व था और वे सेना के तीनों अंगों के ऑपरेशन, प्रशिक्षण, ट्रांसपोर्ट, सपोर्ट सर्विसेस, संचार, रखरखाव, रसद पूर्ति तथा संयंत्रों में टूट-फूट संबंधी कार्य भी देख रहे थे. सीडीएस के रूप में उनकी नियुक्ति का मुख्य उद्देश्य युद्ध की चुनौतियों से निपटने के लिए तीनों सेनाओं में तालमेल को बढ़ाना था.
रक्षा सुधारों सहित विविध पहलुओं पर कर रहे थे काम
दरअसल आज दुनियाभर में सेनाओं में अत्याधुनिक तकनीकों के समावेश के चलते युद्धों के स्वरूप और तैयारियों में लगातार बड़ा बदलाव देखा जा रहा है, ऐसे में देश की सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के लिए बेहद जरूरी था कि तीनों सेनाओं की पूरी शक्ति एकीकृत होकर कार्य करे क्योंकि तीनों सेनाएं अलग-अलग सोच से कार्य नहीं कर सकती. दुश्मन के हमलों को नाकाम करने के लिए सेना के तीनों अंगों के बीच तालमेल होना बेहद जरूरी है. सेना के लिए रणनीति विकसित करने के अलावा सैन्य अधिकारियों और जवानों के बीच विश्वास बनाए रखना भी सीडीएस बिपिन रावत का महत्वपूर्ण दायित्व था और अपने सैन्य अनुभवों के आधार पर इन सभी दायित्वों को बखूबी निभाते हुए वे पहले सीडीएस के रूप में रक्षा सुधारों सहित सशस्त्र बलों से संबंधित विविध पहलुओं पर काम कर रहे थे। सीडीएस रहते सशस्त्र बलों और सुरक्षा तंत्र के आधुनिकीकरण में उनका योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा.
CBSEH Class 10 सामाजिक विज्ञान Solved Question Paper 2016
1921 तक गाँधी जी ने 'स्वराज का झण्डा' तैयार कर लिया था।
स्वराज के इस झण्डे की मुख्य विशेषताएं:-
(i) यह तिरंगा झण्डा - लाल, हरा और सफेद था।
(ii) इसके मध्य में चरखा था।
(iii) यह गाँधीवादी विचार - स्वावलंबन का प्रतीक था।
(iv) जुलूसों में झण्डा थामे चलना शासन के प्रति अवज्ञा का संकेत बना।
अधिकांश स्थापित लोकतांत्रिक शासनिक व्यवस्थाएँ विस्तार की चुनौती का सामना कर रही हैं। इस कथन की उदाहरणों सहित पुष्टि कीजिए।
अधिकांश स्थापित लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्थाएं विस्तार की चुनौती का सामना कर रही है-
(i) नागरिकों को सरकार से बड़ी-बड़ी अपेक्षाएं होती हैं।
(ii) सरकार अपनी ओर से समाज के उत्थान के लिए सर्वोत्तम प्रयास करती है।
(iii) इसमें लोकतान्त्रिक शासन के बुनियादी सिध्दांतों को सभी इलाकों सभी सामाजिक समूहों और विभिन्न संस्थाओं में लागू करना है।
(iv) स्थानीय सरकारों को अधिक सम्पन्न बनाना।
(v) संघ की सभी इकाइयों के लिए सिध्दांतों को व्यवहारिक स्तर पर लागू करना, महिलाओं और समूहों को उचित भागीदारी सुनिश्चित करना शामिल है।
वस्त्र उद्योग देश का एकमात्र उद्योग है जो कच्चे माल से उच्चतम अतिरिक्त मूल्य उत्पाद तक की श्रृंखला में परिपूर्ण तथा आत्मनिर्भर है। इस कथन को न्यायसंगत ठहराइए।
वस्त्र उद्योग उत्पाद तक की श्रंखला में परिपूर्ण तथा आन्मनिर्भर है-
(i) वस्त्र उद्योग का औद्योगिक उत्पादन में महत्त्पूर्ण (14%) योगदान है।
(ii) यह बड़ी संख्या में (35 लाख) लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाकर कृषि के बाद दूसरा बड़ा उद्योग है।
(iii) इससे बड़ी मात्रा में (24.6 %) विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
(iv) सकल घरेलू उत्पाद में इसका 4% योगदान है।
फ्रांसीसियों के विरूध्द लड़ने के लिए समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा किए गए प्रयासों से वियतनाम में राष्ट्रवाद किस प्रकार उभरा? विश्लेषण कीजिए।
फ्रांसीसियों द्वारा वियतनाम के उपनिवेशीकरण ने देश के लोगों को जीवन के सभी क्षेत्रों में उपनिवेशियों के साथ संघर्ष करने का अवसर प्रदान किया। वियतनाम के लोगों को यह समझ आने लगी कि वे क्या-क्या खो चुके हैं। इस समझ से वियतनाम में राष्ट्रवाद के बीज पड़े। उपनिवेशी सरकार के प्रयत्नों के विरूध्द अध्यापक व विद्यार्थी उठ खड़े हुए। पश्चिम की उपस्थिति के प्रति कई धार्मिक आंदोलन विरूध्द हो गए। चीन के घटनाक्रम ने भी राष्ट्रवादियों के हौसले बड़ा दिए। वियतनामी विद्यार्थी फ्रांसीसियों के विरूध्द स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एसोसिएशन के रूप में संगठित हुए।
यूरोप में उन्नीसवीं सदी के दौरान नारी की छवि किस प्रकार राष्ट्र का रूपक बनी। विश्लेषण कीजिए।
नारी की छवि राष्ट्र के रूपक के रूप में:- कलाकारों ने राष्ट्र को व्यक्ति के रूप में व्यक्त करने का उपाय निकाला। उस समय राष्ट्रों को नारी भेष में प्रस्तुत किया गया। राष्ट्र को व्यक्ति का जामा पहनाते हुए जिस नारी रूप को चुना गया, वह जीवन में कोई खास महिला नहीं थी। यह तो राष्ट्र के अमूर्त विचार को ठोस रूप प्रदान करने का प्रयास था। इस प्रकार नारी की छवि राष्ट्र का रूपक बन गई। फ्रांसीसी क्रान्ति के दौरान कलाकारों ने स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र जैसे विचारों को व्यक्त करने के लिए नारी रूपक का प्रयोग किया।
किसी खास मुद्दे पर केंद्रित आंदोलन किस प्रकार सार्वभौम प्रकृति के आन्दोलनों से भिन्न हैं?
खास मुद्दे पर केंद्रित आंदोलन और सार्वभौम प्रकृति के आंदोलन में भिन्नता:- खास मुद्दे पर आधारित आंदोलन एक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सीमित समय तक ही सक्रिय होते हैं; जबकि सार्वभौम प्रकृति के आंदोलन व्यापक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए लम्बे समय तक चलते हैं।
'सविनय अवज्ञा आंदोलन' 'असहयोग आंदोलन' से भिन्न था। कथन की पुष्टि उदाहरणों सहित कीजिए।
असहयोग आंदोलन :-
(i) लोगों से सरकार को सहयोग न करने के लिए कहा गया।
(ii) विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया।
(iii) शराब की दुकानों की पिकेटिंग की गई।
(iv) विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई।
(v) अनेक स्थानों पर व्यापारियों ने विदेशी चीजों का व्यापार करना या विदेशी व्यापार में पैसा लगाने से इंकार कर दिया।
(vi) वकीलों ने मुक़दमे लड़ने बंद कर दिए।
(vii) विद्यार्थियों ने स्कूल और कॉलेज छोड़ दिए।
सविनय अवज्ञा आंदोलन :-
(i) लोगों से औपनिवेशिक कानूनों का उलंघन करने के लिए आह्मां किया गया।
(ii) किसानों ने लगान और चौकीदारी क्र चुकाने से इन्कार कर दिया।
(iii) देशवासियों ने नमक क़ानून तोड़ा।
(iv) गांवों में तैनात कर्मचारी इस्तीफे देने लगे।
(v) जंगलों में रहने वाले लोग वन कानून का उल्लंघन करने लगे।
वर्ग विशेषी समूह किन्हें कहते हैं? उनकी अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय कार्य-विधि का वर्णन कीजिए।
वर्ग विशेषी समूह :-
वर्ग विशेषी समूह वे होते है जो समाज के किसी खास हिस्से अथवा समूह के हितों को वढ़ावा देते हैं।
कार्य विधि :-
(i) अन्य समूहों के अनावश्यक प्रभाव को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
(ii) ये समूह अपने समाज की आवश्यकताओं और समस्याओं के प्रति जाग्रति पैदा करते हैं।
(iii) इनका लक्ष्य अपने सदस्यों के हितों को बढ़ावा देना है न कि सर्वसामान्य समाज का।
'भारत में 1991 से विदेश व्यापार और विदेशी निवेश पर से अवरोधों को काफी हद तक हटा दिया गया था।' इस कथन को न्यायसंगत ठहराइए।
विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश पर से अवरोध को हटाया -
(i) विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश पर से अवरोधों को अंशतः हटा दिया गया।
(ii) वस्तुओं का आयत और निर्यात सुगमता से किया जा सका।
(iii) वस्तुओं की गुणवत्ता में सुधार हो सका।
(iv) विदेशी कम्पनियाँ अपने यहाँ फैक्टरी और कार्यालय खोल सकीं।
(v) भारतीय उत्पादकों के लिए विश्व के उत्पादकों से प्रतिस्पर्धा करने का अवसर मिला।
'राष्ट्रिय राजनीतिक दल' से क्या अभिप्राय है? राष्ट्रीय राजनीतिक दल बनने के लिए आवश्यक शर्तों का उल्लेख कीजिए।
'राष्ट्रिय राजनीतिक दल' :-
राष्ट्रीय राजनीतिक दल उन्हें कहा जाता है जिनकी विभिन्न राज्यों में इकाइयाँ हैं। ये इकाइयाँ राष्ट्रीय स्तर पर तय होने वाली नीतियों, कार्यक्रमों और रणनीतियों को ही मानती है।
आवश्यक शर्तें:-
(i) अगर कोई दल लोकसभा चुनावों में पड़े कुल वोट का अथवा चार राज्यों के विधान सभाई चुनाव में पड़े कुल वोटों का 6% हासिल करता है।
(ii) लोकसभा के चुनाव में कम से कम चार सीटों पर जीत दर्ज करता है तो इन शर्तों के पूरा करने पर वह राष्ट्रीय दल कहलाता है।
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