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इंटरनेशनल नर्स डे 2020: क्यों है दुनिया भर में केरल की नर्सों की मांग?

International Nurses Day 2020: भारत ही नहीं पूरी दुनिया में केरल या दक्ष‍िण भारत की नर्सें पसंद की जाती हैं. क्या आप जानते हैं, इसके पीछे की खास वजह क्या है?

प्रतीकात्मक फोटो

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 12 मई 2020,
  • (अपडेटेड 12 मई 2020, 11:59 AM IST)

भारत ही नहीं पूरी दुनिया में 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है. नर्स दिवस पर आज हम आपका इस खास बात पर ध्यान दिलाना चाहते हैं कि क्यों भारत का एक हिस्सा नर्सिंग पेशे के लिए जाना जाता है. वो हिस्सा है दक्ष‍िण भारत. दक्ष‍िण भारत में भी केरल एकमात्र ऐसा राज्य है जहां नर्सिंग पेशा सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है. न सिर्फ राज्य की महिलाएं ही इस पेशे को पसंद करती हैं, बल्कि इस राज्य की नर्सों को भी पूरी दुनिया में पसंद किया जाता है. आइए जानते हैं इसके पीछे की खास वजह.

विशेषज्ञों का कहना है कि समर्पण, बुद्धि और समय की पाबंदी के मामले में दक्षिण भारत की नर्सों का कोई विकल्प नहीं है. दक्षिण भारत की महिलाएं ज्यादातर नर्सिंग को करियर बनाती हैं. इसके पीछे एक कारण यह भी है कि केरल, कर्नाटक में सैकड़ों नर्सिंग कॉलेज और अन्य संस्थान हैं जो हर साल नर्सों को प्रशिक्षित करते हैं. यहां नर्सिंग की पढ़ाई आम है.

पड़ोसी देश अक्सर केरल में नर्सिंग छात्रों पर नज़र रखते हैं. उनका मानना है कि यहां कि छात्राएं काफी समर्पित भाव से कार्य करती हैं. इनकी कार्यक्षमता बहुत अधिक होती है. और समय की पाबंद भी होती हैं. यही कारण है कि विदेशों में भारतीय नर्सों की अधिक मांग है.

एक और फैक्ट यह भी है कि केरल में साक्षरता बहुत अधिक है और महिलाओं का अनुपात भी बाकि राज्यों के मुकाबले अधिक है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और हार्ट केयर फाउंडेशन के संस्थापक सदस्य पद्मश्री डॉ केके अग्रवाल का कहना है कि नर्सिंग प्रोफेशन में आने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है, इस पेशे को जज्बे के तौर पर पसंद करना. अगर आपने इस पेशे को अपने करियर और पैशन के तौर पर पसंद किया है तभी आप इसे अपना सकते हैं.

उन्होंने कहा कि इस पेशे को अपनाने वाले लोग इसे सेवाभाव से लेते हैं. साउथ इंडिया में ज्यादातर महिलाओं में इस पेशे को अपनाने के पीछे उनके मन में बचपन से इस पेशे के प्रति लगाव पैदा हो जाता है. उसका कारण आसपास के माहौल या अपने परिवार में किसी व्यक्त‍ि को इस पेशे में देखकर उनमें ये भाव पैदा हो जाता है. इसी वजह से केरल की नर्सों को अंतरराष्ट्रीय तौर पर पसंद किया जाता है. कोरोना जैसी बीमारी के समय में केरल ने अपने हेल्थकेयर सिस्टम और इन्हीं समर्पित नर्सों की बदौलत कोरोना को नियंत्रित किया हुआ है.

सच का कोई विकल्प नहीं

सबसे निर्मम और संवेदनहीन समय में भी सत्य का अस्तित्व मौजूद रहता है, वह चाहे अदृश्य रूप में हो या व्यक्ति और परिवेश में ईमानदारी, सिद्धांतों और आदर्शों की शक्ति के रूप में।

सच का कोई विकल्प नहीं

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मीना बुद्धिराजा

सच अपने आप में ऐसा मूल्य है जिसकी जरूरत हमेशा ही रहती है, जिसके बिना समाज और मानवता की कल्पना नहीं की जा सकती। सच के विरोधी और झूठ से परिपूर्ण समय में भी सत्य आखिरकार अपराजित ही सिद्ध होता है। कहा जाता है कि सत्य की नाव तूफानों से डगमगाती जरूर है, लेकिन डूबती नहीं। सच की उपस्थिति ही अपने आप में इतनी पर्याप्त और प्रभावशाली होती है कि उसे किसी प्रदर्शन और दिखावे की जरूरत नहीं होती। सच की गहराई में सभी मानवीय मूल्य समाहित होते हैं, जिन्हें सतही दृश्यों से अनुभव नहीं किया जा सकता।

कोई उद्देश्य या वस्तु अपने अर्थ में इतनी मूल्यवान और सार्थक है तो उसे एक ही प्रयास में नहीं प्राप्त नहीं किया जा सकता, बल्कि उसके लिए बार-बार कोशिश की जा सकती है। दरअसल, कोई भी महान चीज अपने लिए सर्वस्व और उत्कृष्ट की मांग करती है और उसके रास्ते में आने वाली कठिनाइयों को पराजय नहीं कहा जा सकता। ऐसे उद्देश्य को पूरा करने में बाधाएं आ सकती हैं, समस्याएं हो सकती हैं और बहुत बार असफलता भी मिल सकती है, लेकिन इन्हें जीवन के अनुभव माना जा सकता है।

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सफलता की वह सीमित परिभाषा, जिसमें सब कुछ सकारात्मक परिणाम हों और बिना किसी हानि के सिर्फ लाभ पर ही निर्भर हो, उसे किसी महान उद्देश्य को प्राप्त करने की सफलता का मापदंड नहीं माना जा सकता। प्रत्येक युग और समय में ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिन्हें बहुत-सी असफलताओं और निराशाओं से निकलकर ही अपने कार्यों की मंजिल तक पहुंचाने में विजय हासिल हुई।

सच की प्रकृति ही है कि वह बंधनों और संकीर्णता से मुक्त कर देता है, किसी दायरे में बांध कर नहीं रखता। सच व्यक्ति के अस्तित्व को विस्तार देता है अनंत और सीमाओं से आगे, साथ ही नई संभावनाओं की चुनौती को स्वीकार करने की शक्ति भी। मुश्किल और असंभव विकल्पों की तरफ वह खुद उसे प्रेरित करता है। इसलिए इसके रास्ते में मिलने वाले संघर्षों में बहुत कुछ निरर्थक खोकर, क्षणिक स्वार्थों को छोड़कर भी जीवन के सार्थक और स्थायी अर्थ तक पहुंचा जा सकता है। इसे वास्तव में असफलता नहीं, किसी व्यक्ति के जीवन की उपलब्धि कहा जा सकता है। जिस निजी महत्त्वाकांक्षा और झूठे सबंधों को बचाने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़े, उसे बचाना भी व्यर्थ है, क्योंकि आखिरकार जीवन में सच के अलावा कोई विकल्प नहीं होता।

सच के लिए आत्मिक और गहरा रिश्ता सिर्फ अपनी स्वतंत्र चेतना से रखना चाहिए और इसीलिए जीवन में अपनी भूमिका के चुनाव में संवेदना के साथ ही वैचारिकता से निर्णय करना भी जरूरी है। बहुत-सा बोझ जो दूसरों पर निर्भर रहने का है, उनके दबाव और स्वीकृति के बंधनों का है, उनसे मुक्त होकर ही अपने अस्तित्व की सार्थकता का अनुभव होने लगता है। किसी अनिश्चित के लिए निश्चित रास्ते की सुविधा को छोड़कर ही कोई नई दृष्टि की खोज की जा सकती है, अन्यथा एक निरर्थकता बोध में अपनी चेतना के स्तर पर धीरे-धीरे समाप्त होने लगते हैं।

अपने अनुभवों की आंच से तपने वाले जीवन का प्रभाव हमेशा सहज और स्थायी रहता है, व्यक्ति और समाज दोनों के लिए। सहयोगी और विरोधी परिस्थितियों में बुद्धि का अर्थ उसके माध्यम से दुनिया को समझना नहीं है, बल्कि इस समाज में अपने होने के कारण को विवेक से जानना और अपने लिए भीड़ के अनुकरण से अलग सार्थक विकल्प की खोज के लिए कोशिश करना है। सच के लिए प्रतिबद्ध व्यक्ति के लिए संसार में ऐसा कुछ नहीं होता जो उसकी स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा को बांध सके।

अपने स्वभाव में सच बहुत गहरा होता है, उथला और सतही नहीं, इसलिए उस तक पहुंचना भी आसान नहीं होता। मनुष्य को जीवन के अनेक घात-प्रतिघात, उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए ही कई अनचाहे-अदृश्य रास्तों से निकलना पड़ता है जो उसने निर्धारित नहीं किए होते। लेकिन सबसे मूल्यवान अनुभव यही होते हैं, क्योंकि सुख के लिए दुख से सामना करके ही उसकी सार्थकता का पता लगता है। तब दुनिया के सब लालच सच के महत्त्व के सामने छोटे क्यों बुद्धि विकल्प हो जाते हैं, जिसमें किसी मानसिक गुलामी और आत्मसम्मान से समझौते का प्रश्न नहीं उठता।

जीवन को उसकी संपूर्णता में जीने के लिए यथार्थ में जिस आंतरिक सच की अनुपस्थिति का अनुभव होता है, वह उसको जाने बिना समाज का एक औपचारिक हिस्सा बनकर रहता है, जिसकी कोई सार्थक भूमिका नहीं है। इसलिए समाज के पूर्वनिर्धारित दोहराव से अलग जब व्यक्ति अपनी स्वतंत्र प्रक्रिया को पहचान लेता है, तब यथार्थ और सत्य पूरी तरह उसके सामने उजागर हो सकता है जो परंपरा के बदलाव और विकल्प पर आधारित होता है। इसमें फिर सफलता और असफलता की सामाजिक अपेक्षा के बोझ से मुक्त होकर उसकी अपनी निर्मित जीवन की दृष्टि का दायित्व भी उसे उठाना चाहिए जो सच को केंद्र में रखती है।

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सेना अपना 'घर दुरुस्त' करे, महिला ऑफिसर्स के प्रमोशन मामले में सुप्रीम कोर्ट की फटकार

पीठ ने कहा, 'हमें लगता है कि आप (सेना) इन महिला अधिकारियों के प्रति निष्पक्ष नहीं रहे हैं। हम मंगलवार को एक स्पष्ट आदेश पारित करने जा रहे हैं। बेहतर होगा कि आप अपने 'घर को दुरुस्त' करें।'

सेना अपना 'घर दुरुस्त' करे, महिला ऑफिसर्स के प्रमोशन मामले में सुप्रीम कोर्ट की फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सेना से कहा कि वह अपना 'घर दुरुस्त' करे। साथ ही अदालत को लगता है कि यह उन महिला अधिकारियों क्यों बुद्धि विकल्प के लिए निष्पक्ष नहीं रही, जिन्होंने 2020 में SC के निर्देश पर स्थायी कमीशन दिए जाने के बाद पदोन्नति में देरी का आरोप लगाया है। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा की पीठ 34 महिला सैन्य अधिकारियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने आरोप लगाया है कि सेना में लड़ाकू और कमांडिंग भूमिकाएं निभाने के वास्ते पदोन्नति के लिए जूनियर पुरुष अधिकारियों पर विचार किया जा रहा है।

पीठ ने कहा, 'हमें लगता है कि आप (सेना) इन महिला अधिकारियों के प्रति निष्पक्ष नहीं रहे हैं। हम मंगलवार को एक स्पष्ट आदेश पारित करने जा रहे हैं। बेहतर होगा कि आप अपने 'घर को दुरुस्त' करें और हमें बताएं कि आप उनके लिए क्या कर रहे हैं। सबसे पहले, उन पुरुष अधिकारियों के परिणामों की घोषणा न करें जिन पर अक्टूबर में (पदोन्नति के लिए) विचार किया गया था, जब तक कि आप उनके (महिलाओं के) परिणामों की घोषणा नहीं करते।'

'प्रमोशन के लिए महिला अधिकारियों पर विचार क्यों नहीं?'
बेंच ने केंद्र और सशस्त्र बलों की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) संजय जैन और सीनियर वकील आर बालासुब्रमण्यन से पूछा कि उन्होंने अक्टूबर में पदोन्नति के लिए इन महिला अधिकारियों पर विचार क्यों नहीं किया। पीठ ने आदेश पारित करने के लिए याचिका को मंगलवार के लिए सूचीबद्ध किया। जब केंद्र के विधि अधिकारियों ने कहा कि वे महिला अधिकारियों के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो CJI ने कहा, 'हमारा मतलब जैन (एएसजी) और कर्नल बाला (वरिष्ठ वकील) से है। मैं आपके संगठन के बारे में निश्चित नहीं हूं।'

'जूनियर पुरुष अधिकारियों का हुआ प्रमोशन लेकिन. '
एएसजी ने कहा कि सैन्य प्रतिष्ठान भी महिला अधिकारियों के हितों के लिए प्रतिबद्ध है। विधि अधिकारी ने बताया कि सेना ने महिला सैन्य अधिकारियों की प्रोन्नति के लिए 150 सीट स्वीकृत की हैं। महिला अधिकारियों की ओर से सीनियर वकील मोहना ने कहा कि SC की ओर से महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के फैसले के बाद से 1,200 जूनियर पुरुष अधिकारियों को पदोन्नत किया गया है।

उन्होंने पीठ को बताया, 'पिछली सुनवाई के बाद भी 9 पुरुष अधिकारियों को उच्च रैंक पर रखा गया था। सीनियर महिला अधिकारियों को पदोन्नत करने से पहले कोई पदोन्नति नहीं होनी चाहिए। मुझे पता है कि नेक इरादे वाले वकील इस मामले में पेश हो रहे हैं और मैं वकीलों के खिलाफ नहीं हूं। मैं ये शिकायतें प्रशासन के खिलाफ कर रही हूं।'

प्रिलिम्स फैक्ट्स

Great-knot

भारत ने 21 नवंबर को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हेतु वैश्विक साझेदारी समूह की अध्‍यक्षता ग्रहण की। यह समूह मानव केंद्रित विकास और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दायित्त्वपूर्ण उपयोग में सहायता के लिये एक अंतर्राष्‍ट्रीय पहल है। इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने टोक्यो में इस समूह की बैठक में वर्चुअल माध्‍यम से भाग लिया। इस दौरान भारत ने फ्राँस से प्रतीकात्‍मक रूप से समूह की अध्‍यक्षता ग्रहण की। भारत ने इससे पूर्व इंडोनेशिया के बाली में जी-20 संगठन की अध्‍यक्षता प्राप्‍त की थी। इसके अंतर्गत भारत ने समूह के सदस्‍य देशों के साथ विश्‍व भर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सदुपयोग के लिये कार्ययोजना बनाने की दिशा में प्रतिबद्धता जाहिर की। भारत आधुनिक साइबर कानूनों और कार्ययोजना के लिये एक व्‍यवस्‍था तैयार कर रहा है जो पारदर्शिता, सुरक्षा और विश्‍वास तथा जबावदेही के सिद्धातों द्वारा संचालित होगी।

क्षेत्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान संस्थान

केंद्रीय आयुष , पत्‍तन, नौवहन और जलमार्ग मंत्री ने 20 नवंबर, 2022 को सिलचर में क्षेत्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (RRIUM) के अत्याधुनिक परिसर का उद्घाटन किया। अभी हाल में खोला गया यह संस्थान आयुष चिकित्‍सा प्रणालियों में से एक परंपरागत यूनानी चिकित्सा के बारे में पूर्वोत्तर में स्‍थापित पहला केंद्र है। 3.5 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैले इस नए परिसर का निर्माण 48 करोड़ रूपए की लागत से किया गया है। इस परिसर का विकास भारत सरकार के उद्यम-राष्ट्रीय परियोजना निर्माण निगम (NPCC) द्वारा किया गया है। इसे भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान परिषद (CCRUM) को सौंपा गया है।उन्‍होंने यह भी बताया कि यूनानी पद्धति न केवल भारत में बल्कि अन्य देशों में भी सबसे प्रसिद्ध पारंपरिक दवा पद्धतियों में से एक है। यूनानी चिकित्सा पर यह अत्याधुनिक संस्थान अब सिलचर से काम कर रहा है ताकि लोगों को अच्‍छा उपचार प्राप्त करने और जीवन की गुणवत्ता को फिर से हासिल करने में मदद मिले। यूनानी चिकित्सा का मूल विश्वास इस सिद्धांत पर कार्य करता है कि मानव शरीर की अपनी ही स्वयं की उपचार शक्ति होती है जिसे बढ़ावा देने की ज़रूरत पड़ती है। इस चिकित्‍सा प्रणाली का मुख्‍य लाभ यह है कि यह हर्बल दवाइयों का उपयोग करके रोगों की रोकथाम और उपचार में मदद करती है।

रेज़ांग ला

हाल ही में 18 नवंबर, 2022 को रेज़ांग ला की लड़ाई की 60वीं वर्षगाँठ मनाई गई। चुशुल घाटी के दक्षिण-पूर्वी रिज पर बर्फीले पहाड़ की चोटी पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच लड़ी गई ‘रेज़ांग ला’ की लड़ाई को अक्सर 1962 में युद्ध के दौरान महान भारतीय ताकत के प्रदर्शन के रूप में याद किया जाता है। 13 कुमाऊँ की चार्ली कंपनी के सैनिकों को 18 नवंबर, 1962 की उस सर्द रात में ‘लास्ट मैन, लास्ट राउंड’ तक लड़ने के लिये जिस तरह की ताकत की ज़रूरत थी, उसका उन्होंने प्रदर्शन किया था। इस कंपनी के 120 सैनिकों और अधिकारियों में से 114 की मौत हो गई फिर भी वे दुश्मन के 1000 से ज़्यादा सैनिकों को मार गिराने में कामयाब हुए थे। रेज़ांग ला, भारत के लद्दाख और चीनी प्रशासित स्पैंगुर (Spanggur Lake) झील बेसिन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर एक पहाड़ी दर्रा है। यह चुशूल घाटी के पूर्वी वाटरशेड रिज पर स्थित है जिस पर चीन दावा कर रहा है। यह 16,000 फुट की ऊँचाई पर स्थित रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्यों बुद्धि विकल्प चुशूल गाँव और स्पैंगुर झील के आसपास के ऊँचे पहाड़ों के बीच एक संकरी खाई है, जो भारतीय और चीनी दोनों क्षेत्रों में फैली हुई है।

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